पेट से परे: जिंदगी में दो चीजें कभी खत्म नहीं होनी चाहिए, एक भूख और दूसरा खाना
ओम प्रकाश चौधरी
हमारे समाज में ऐसे लोग आपको अक्सर मिल जाएंगे, जिनका पेट शायद किसी सामान्य मानव शरीर का हिस्सा नहीं, बल्कि किसी गहरे कुएं जैसा होता है। इन्हें देखकर हमेशा यही लगता है कि भगवान ने इन्हें पेट नहीं, एक अंतहीन गोदाम दे दिया हो, जिसमें कितना भी सामान भर दो, कभी ‘पूर्ण’ का बोर्ड नहीं लगेगा।
अक्सर ऐसे लोग दावतों और शादी-ब्याह में मिलते हैं। जैसे ही ये हॉल में कदम रखते हैं, खाना खुद ही अलर्ट मोड में आ जाता है—”भाई, तैयार हो जाओ, अब हमारी असली परीक्षा शुरू होने वाली है!” ये लोग प्लेट में खाना भरने के मामले में इतने दक्ष होते हैं कि यदि उनके हाथ में चम्मच की बजाय जेसीबी मशीन दे दी जाए, तो शायद वो बुफे की पूरी टेबल ही उठाकर ले जाएं।
इनका खाने का अंदाज़ भी निराला होता है। पहले तो वे बड़े शिष्टाचार से कहते हैं, “अरे, मैं तो बस थोड़ा-सा ले रहा हूँ,” और फिर ‘थोड़ा’ का मतलब जानने के लिए आपको गणित की किसी उन्नत किताब की जरूरत पड़ जाएगी। प्लेट में चावल, रोटी, सब्जी, दाल, सलाद, चटनी—सब कुछ एक साथ जमा कर लेते हैं, ऐसा लगता है मानो वो खाना खाने नहीं, बल्कि भोजन से एक जटिल कॉकटेल बनाने के मिशन पर हैं।
मजे की बात तो यह है कि इन लोगों को भूख कभी सामान्य नहीं लगती। अगर इन्हें सुबह भूख लग रही हो, तो दोपहर के भोजन का इंतजार नहीं करते; और अगर दोपहर में भूख लग जाए, तो डिनर का प्लान वहीं बैठकर बन जाता है। इन्हें खाने की सूची में सबसे पसंदीदा शब्द ‘बुफे’ और सबसे नापसंद शब्द ‘डाइट’ लगता है।
जब बात मिठाई की आती है, तो इन्हें देखकर ऐसा लगता है जैसे कोई खजाने की खोज में लगा हुआ हो। पहले तो हल्की सी शर्मिंदगी के साथ एक-आध गुलाब जामुन उठाते हैं, लेकिन फिर उनके हाथ ऐसे रफ्तार पकड़ते हैं कि कब प्लेट में तीन से चार और फिर पांच हो जाते हैं, यह खुद गुलाब जामुन भी नहीं समझ पाता।
और जब कोई पूछता है, “भाई, इतना कैसे खा लेते हो?” तो बड़ी मासूमियत से जवाब आता है, “अरे, मेरा मेटाबॉलिज्म तेज़ है!” ये मेटाबॉलिज्म की आड़ में पेट की सारी सीमाएं पार कर लेते हैं। लेकिन उनकी असली विजय तब होती है जब डकार मारकर कहते हैं, “अरे, खाना बड़ा हल्का था!”
इनके खाने का जोश देखकर यही लगता है कि अगर खाने का कोई ओलंपिक खेल होता, तो ये लोग न केवल गोल्ड मेडल जीतते, बल्कि खाने के बाद गोल्ड प्लेट में मिठाई भी मांग लेते। आखिरकार, इनका सिद्धांत है—”जिंदगी में दो चीज़ें कभी खत्म नहीं होनी चाहिए—एक भूख और दूसरा खाना!”